Robotic Elephants: त्योहारों में परंपरा और करुणा का नया संगम

🗓️ Published on: July 23, 2025 3:43 pm
Robotic Elephants

Robotic elephants अब भारतीय त्योहारों और मंदिरों की परंपराओं में एक संवेदनशील और तकनीकी बदलाव के प्रतीक बन चुके हैं। जहां पहले असली हाथियों को सजाकर धार्मिक आयोजनों में शामिल किया जाता था, अब उनकी जगह मशीनी गजराज ले रहे हैं – जो न सिर्फ सुरक्षित हैं बल्कि करुणा और आधुनिक सोच का संदेश भी देते हैं।

रोबोटिक गजराज बने त्योहारों के सुपरस्टार

Robotic Elephants

दक्षिण भारत के मंदिरों में अब एक नई सुबह दस्तक दे रही है। केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में अब मंदिरों में Robotic elephants का उपयोग किया जा रहा है। ये मिकैनिकल हाथी न केवल परंपरा को बनाए रखते हैं, बल्कि असली हाथियों को होने वाली पीड़ा से भी मुक्ति दिलाते हैं।

इन रोबोटिक गजराजों की आंखें झपकती हैं, कान फड़फड़ाते हैं, सूंड लहराती है और यहां तक कि यह पानी की बौछारें भी छोड़ सकते हैं। इनका निर्माण फाइबर, सिलिकॉन और स्टील जैसे आधुनिक मटेरियल से किया गया है, जो इन्हें बेहद रियलिस्टिक लुक देते हैं।

Robotic Elephants

अब कोई दर्द नहीं, कोई जंजीर नहीं

इन Robotic elephants की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ये कभी थकते नहीं, ना ही डरते हैं और ना ही किसी के लिए खतरा बनते हैं। पूजा-पाठ हो या धार्मिक जुलूस, अब इनकी मौजूदगी से ना केवल कार्यक्रम भव्य होते हैं, बल्कि किसी जीव को कष्ट भी नहीं होता।

PETA (People for the Ethical Treatment of Animals) इंडिया की पहल से यह बदलाव आया है। साल 2023 से मंदिरों में रोबोटिक हाथियों का इस्तेमाल शुरू हुआ। आज तक कम से कम 18 मंदिरों में ये मशीनी गजराज शामिल हो चुके हैं।

Robotic Elephants

असली हाथियों को क्यों मिल रही राहत?

भारत में आज भी लगभग 2,700 हाथी कैद में हैं, जो अकेलेपन, दर्द और लगातार शोषण की ज़िंदगी जी रहे हैं। इन्हें बचपन में झुंड से अलग कर दिया जाता है और मंदिरों या आयोजनों में मनोरंजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ये हाथी दिन-रात जंजीरों में जकड़े रहते हैं और डंडों व नुकीले औजारों से पीटे जाते हैं ताकि वे इंसानों की आज्ञा मानें।

“अंकुश” नामक एक खतरनाक औजार, जो लोहे का नुकीला हुक होता है, उसे इनके प्रशिक्षण में इस्तेमाल किया जाता है। इससे हाथियों को शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की पीड़ा होती है। सीनियर वैज्ञानिक आनंद कुमार बताते हैं कि लंबे समय तक कैद और मार से ये हाथी भीतर से टूट जाते हैं। उनकी हिलती गर्दन और झूमता शरीर उनकी गहरी वेदना का संकेत है।

हादसों से बदली सोच

पिछले कुछ वर्षों में मंदिरों में हाथियों के बेकाबू होने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं। 2023 में केरल में 9 हाथी बेकाबू हो गए, जिनमें 5 लोगों की जान चली गई। मंदिरों की परेड और आतिशबाजियों के दौरान हाथियों के हिंसक व्यवहार के कारण कई बार भगदड़ जैसी घटनाएं हुई हैं। Heritage Animal Task Force के अनुसार, पिछले 15 वर्षों में केवल केरल में हाथियों द्वारा की गई घटनाओं में 526 लोगों की मौत हो चुकी है।

इन घटनाओं ने चेताया कि अब परंपराओं को संवेदनशीलता और सुरक्षा के साथ जोड़ने का समय आ गया है। Robotic elephants की एंट्री इसी बदलाव का स्वागत योग्य परिणाम है।

सरकार और अदालतों की पहल

केरल हाई कोर्ट ने नवंबर 2024 में कैद में रखे हाथियों के संरक्षण और स्वास्थ्य पर सख्त निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा, “परंपरा के नाम पर जानवरों का शोषण अब सहन नहीं किया जा सकता।” कर्नाटक सरकार ने भी मंदिरों से अनुरोध किया कि वे Robotic elephants को अपनाएं।

हाल ही में अहमदाबाद की रथयात्रा में 3 हाथी बेकाबू हो गए थे, जिससे दो लोग घायल हो गए। इस घटना पर PETA ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपील की कि रथ यात्राओं में रोबोटिक हाथियों का उपयोग किया जाए।

सिलेब्स भी बने बदलाव के वाहक

कई नामी हस्तियों ने भी इस बदलाव को समर्थन दिया है। अभिनेत्री त्रिशा कृष्णन ने तमिलनाडु के एक मंदिर को ‘गज’ नाम का रोबोटिक हाथी भेंट किया। अभिनेता सुनील शेट्टी ने कर्नाटक के मंदिर को एक लाइफ-साइज मिकैनिकल गजराज दिया। वहीं, प्रसिद्ध सितार वादक अनुष्का शंकर ने त्रिशूर के मंदिर को 800 किलो का ‘कोम्बारा कन्नन’ नामक रोबोटिक हाथी डोनेट किया।

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मशीनी गजराज का निर्माण और खासियत

केरल के कलाकार प्रसांथ पुथुवेलिल और उनकी टीम अब तक 78 से अधिक Robotic elephants बना चुकी है। इन हाथियों को पारंपरिक सोने जैसी पोशाक, फूलों की मालाएं, और रंग-बिरंगी सजावट दी जाती है। इतना ही नहीं, नकली गोबर तक बनाया जाता है जिसमें चीनी और पानी मिलाया जाता है ताकि मक्खियां आएं और ये और ज्यादा असली लगें।

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निष्कर्ष

Robotic elephants ने न केवल धार्मिक परंपराओं में नई जान फूंकी है, बल्कि जानवरों के अधिकारों के प्रति समाज को जागरूक भी किया है। अब त्योहारों की भव्यता किसी की पीड़ा पर आधारित नहीं, बल्कि तकनीक और करुणा के सह-अस्तित्व पर टिकी है। जब आस्था करुणा से जुड़ जाए, तो हर पूजा, हर पर्व और हर परंपरा और भी पवित्र हो जाती है।