Kutch Banni Cheetah Reintroduction Project गुजरात के कच्छ जिले में एक नई शुरुआत का संकेत है। यह परियोजना न केवल भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को नई दिशा दे रही है, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर रही है कि एक समय विलुप्त हो चुके चीता एक बार फिर गुजरात की धरती पर लौटें। यह प्रयास गुजरात को एशियाई शेरों के साथ-साथ अब चीता की भूमि के रूप में भी पहचान दिलाने जा रहा है।
78 वर्षों बाद चीता फिर लौटेंगे गुजरात
गुजरात में आखिरी बार 1947 में चीता देखे गए थे। इसके बाद यह प्रजाति यहां से विलुप्त हो गई। लेकिन अब 78 सालों के लंबे अंतराल के बाद, अफ्रीका से 8 से 10नर और मादा चीताओं को लाकर कच्छ के बन्नी क्षेत्र में पुनः बसाने की योजना बनाई गई है। यह परियोजना केंद्र सरकार, पर्यावरण मंत्रालय, और वन्यजीव विशेषज्ञों के सहयोग से चलाई जा रही है।
बन्नी के घासीया मैदान में तैयार हो रहा है नया बसेरा
परियोजना के तहत कच्छ के बन्नी क्षेत्र के घनसिया मैदान में 600 हेक्टेयर भूमि पर एक विशेष चीता प्रजनन केंद्र विकसित किया जा रहा है। अप्रैल 2024 से शुरू हुए इस काम का लगभग 80% भाग पूरा हो चुका है। यहाँ 10 किलोमीटर लंबी खुली बाड़बंदी, क्वारंटीन बोमा, निगरानी केंद्र, पशु अस्पताल, जल प्रणाली, सौर ऊर्जा इकाइयाँ और कई अन्य सुविधाएँ विकसित की गई हैं।
प्रमुख जानकारी | विवरण |
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परियोजना नाम | Kutch Banni Cheetah Reintroduction Project |
स्थान | घनसिया मैदान, बन्नी क्षेत्र, कच्छ |
कुल क्षेत्रफल | 600 हेक्टेयर |
अनुमानित चीते | 8–10 नर ओर मादा |
शिकार हेतु प्रजातियाँ | चीतल, काले हिरण |
अफ्रीकी चीते का आगमन | सितंबर 2025 (संभावित) |
निधि | ₹14.70 करोड़ (केंद्र सरकार से अनुदान) |

शिकार व्यवस्था के लिए चीतल और काले हिरण पाले जा रहे हैं
परियोजना के भीतर 100 हेक्टेयर क्षेत्र में चीतल प्रजनन केंद्र भी विकसित किया गया है। इनमें से कई मादा चीतलों ने बच्चों को जन्म भी दिया है। इसके अलावा, 50 से अधिक काले हिरण भी इस इलाके में छोड़े गए हैं ताकि अफ्रीकी तेंदुओं के लिए शिकार का प्राकृतिक वातावरण बन सके।
वन अधिकारियों का मानना है कि बन्नी का घासयुक्त और खुला मैदान अफ्रीकी तेंदुओं के अनुकूल वातावरण प्रदान करेगा।
प्रौद्योगिकी और निगरानी तंत्र का होगा इस्तेमाल
परियोजना में हाई-टेक निगरानी तंत्र स्थापित किया जाएगा, जो चीताओं के मूवमेंट, स्वास्थ्य और शिकार गतिविधियों पर नजर रखेगा। आठ अलग-अलग क्वारंटीन और सॉफ्ट रिलीज़ बोमा बनाए गए हैं, जहाँ चीताओं को शुरुआती समय में आइसोलेशन में रखा जाएगा। प्रत्येक क्वारंटीन क्षेत्र लगभग 40×30 मीटर और रिलीज़ ज़ोन 80 से 100 हेक्टेयर का होगा।
तेंदुए अफ्रीका से सीधे लाए जाएंगे
वरिष्ठ वन अधिकारी डॉ. संदीप कुमार के अनुसार, चीते सीधे अफ्रीकी देशों से लाए जाएंगे। मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान से किसी भी चीता को स्थानांतरित नहीं किया जाएगा। शुरुआती चरण में 6 चीताओं को लाने की योजना है, और बाद में इनकी संख्या बढ़ाकर 16 से 20 तक की जाएगी।

वन अधिकारियों का अनुभव और प्रशिक्षण
परियोजना का नेतृत्व कर रहे डॉ. संदीप कुमार और उनकी टीम ने पहले ही कूनो, शक्करबाग और गिर जैसे प्रतिष्ठित वन्यजीव स्थलों का दौरा किया है। उन्होंने चीताओं के रहन-सहन, चिकित्सा व्यवस्था और व्यवहार का अध्ययन कर 400 से अधिक संदर्भ ग्रंथों का अध्ययन किया है। विशेषज्ञों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है ताकि इस परियोजना को वैज्ञानिक और व्यवस्थित रूप से सफल बनाया जा सके।
स्थानीय लोगों का सहयोग

पर्यावरण मंत्री मुलुभाई बेरा के अनुसार, परियोजना को स्थानीय लोगों, विशेषकर मालधारियों का अच्छा समर्थन मिला है। प्रारंभ में विरोध की आशंका थी, लेकिन संवाद और जागरूकता अभियानों के बाद अब लोग इस परियोजना को सकारात्मक रूप में देख रहे हैं। इससे न केवल जैव विविधता बढ़ेगी बल्कि क्षेत्रीय पर्यटन को भी बल मिलेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना
मार्च 2025 में सासन में आयोजित राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस परियोजना का उल्लेख करते हुए कच्छ को चीताओं के लिए आदर्श स्थल बताया था। उनके समर्थन से इस परियोजना को और गति मिली है।
गुजरात की वन्यजीव विरासत को नई पहचान
इस प्रजनन केंद्र के माध्यम से गुजरात वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखेगा। पहले से ही गुजरात एशियाई शेरों की सुरक्षित आबादी के लिए जाना जाता है, जिसकी संख्या हाल ही में 891 तक पहुँच गई है। अब Kutch Banni Cheetah Reintroduction Project के चलते चीताओं की वापसी भी राज्य की समृद्ध जैव विविधता को और मजबूती देगी।
पर्यटन को मिलेगा नया आयाम
रण उत्सव, कोरी क्रीक, कोटेश्वर मंदिर और सफेद रण जैसे पर्यटन स्थलों के साथ अब चीता प्रजनन केंद्र एक नया आकर्षण बन सकता है। गुजरात के सासन गीर में शेरों को देखने जैसी ही चीताओं को देखने के लिए भी देश-विदेश से पर्यटक आने की संभावना है, जिससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा।
कूनो के बाद अब बन्नी में चीतों का नया बसेरा:
- आखिरी बार 1947 में गुजरात में चीतों की मौजूदगी दर्ज हुई थी
- 1948 में भारत में अंतिम चीते की मृत्यु हुई
- 1952 में सरकार ने भारत से चीते के विलुप्त होने की घोषणा की
- कोरिया के महाराज के इलाके में आखिरी चीते का शिकार किया गया था
- सितंबर 2022 में मध्यप्रदेश के कूनो में नामीबिया से 8 चीते लाए गए
- फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते आए
- दुनिया में कुल 7000 से ज्यादा चीते
- केवल दक्षिण अफ्रीका में 4500 चीते
- दक्षिण अफ्रीकी चीते जेनेटिकली सबसे मजबूत माने जाते हैं
- चीतों की सभी नस्लों की जड़ें दक्षिण अफ्रीका से जुड़ी हैं
चीता विशेष रोचक तथ्य:
- चीते झुंड नहीं बनाते, बिल्ली प्रजातियों की तरह अकेले रहते हैं, कभी-कभी समूह में दिखते हैं
- 2 किलोमीटर दूर से भी स्पष्ट रूप से देख सकते हैं
- 8 महीने की उम्र से शिकार करना शुरू कर देते हैं
- उनके शरीर पर 2 हजार से अधिक स्पॉट होते हैं
- हर 3 सप्ताह में मांस खाने की जरूरत होती है
- आमतौर पर दिन में ही शिकार करते हैं, रात की देखने की क्षमता कम होती है
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प्रमुख आंकड़े:
- बचे हुए चीतों की संख्या: केवल 3 से 5
- वजन: 35 से 65 किलो
- औसत आयु: 10 से 12 वर्ष
- लंबाई: लगभग 3 फुट
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निष्कर्ष:
Kutch Banni Cheetah Reintroduction Project केवल एक वन्यजीव परियोजना नहीं है, बल्कि यह गुजरात की पर्यावरणीय पहचान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर और भी ऊँचाई तक पहुँचाने का प्रयास है। चीताओं की वापसी न केवल राज्य की जैव विविधता को समृद्ध करेगी, बल्कि पर्यटन, रोजगार और अनुसंधान के नए द्वार भी खोलेगी। यदि यह परियोजना सफल होती है, तो यह पूरे भारत के लिए वन्यजीव पुनःस्थापन का एक प्रेरणादायक मॉडल बन सकती है।