History of Harihar fort Maharashtra की बात करें तो यह नासिक ज़िले का एक ऐतिहासिक, अद्वितीय और साहसी ट्रैकिंग डेस्टिनेशन है। यह किला सिर्फ अपने गौरवशाली इतिहास के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी अनोखी बनावट और रोमांचक रॉक-कट सीढ़ियों के लिए भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में स्थित यह दुर्ग आज भी इतिहास प्रेमियों, ट्रैकिंग के शौकीनों और प्रकृति के दीवानों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

हरिहर किला: एक त्रिकोणीय चमत्कार
हरिहर किला, जिसे हरीश किला या हर्षगड़ के नाम से भी जाना जाता है, एक त्रिकोणीय प्रिज़्म पर बना है। इसका आर्किटेक्चर आश्चर्यचकित कर देने वाला है। किले के तीन फलक (faces) और दो किनारे बिल्कुल खड़े यानी 90 डिग्री पर हैं, जबकि तीसरा किनारा लगभग 75 डिग्री के कोण पर पश्चिम की दिशा में झुका हुआ है।
सबसे खास बात है इस किले की रॉक-कट स्टेप्स – एक मीटर चौड़ी खड़ी चट्टानों पर काटी गई सीढ़ियां जो देखने में जितनी डरावनी लगती हैं, चढ़ने में उतनी ही रोमांचकारी होती हैं। महाराष्ट्र के बहुत कम किले ऐसे हैं जहाँ इस प्रकार की सीढ़ियां देखने को मिलती हैं।

कहां स्थित है हरिहर गढ़?
यह History of Harihar fort Maharashtra ऐतिहासिक किला महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है, जो इगतपुरी से लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर है। यह त्र्यंबकेश्वर पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है और समुद्र तल से लगभग 1120 मीटर (3676 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।
किले तक पहुँचने के लिए दो मुख्य गांव हैं:
- हर्षेवाड़ी – यहाँ से ट्रैकिंग आसान मानी जाती है
- निर्गुड़पाड़ा – यहाँ से रास्ता कठिन लेकिन रोमांचक होता है
हरिहर गड का इतिहास
History of Harihar fort Maharashtra में कई उतार-चढ़ाव और सत्ता परिवर्तन शामिल हैं। यह किला अहमदनगर के निज़ामशाही शासन के अधीन था। वर्ष 1636 में शहाजी राजे ने पड़ोसी त्र्यंबकगढ़ के साथ इस किले पर भी विजय प्राप्त की थी।
हालांकि कुछ समय बाद यह दुर्ग फिर से मुगल साम्राज्य के अधीन चला गया। लेकिन 1670 में मराठा सेनापति मोरोपंत पिंगले ने इस किले को पुनः जीतकर स्वराज्य में शामिल कर लिया।
बाद में, 8 जनवरी 1689 को मुगल सरदार मतब्बर खान ने इस पर कब्जा कर लिया। इसके कई वर्षों बाद, 1818 में ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन ब्रिग्स ने इस पर कब्जा कर लिया।
ब्रिटिश राज में जब किलों को नष्ट करने का चलन था, तब कैप्टन ब्रिग्स ने इस किले की लगभग 200 फीट लंबी सीधी सीढ़ियों को देखकर उन्हें नष्ट नहीं किया। उन्होंने इस शानदार शिल्पकला की सराहना की और इसे सुरक्षित रहने दिया।
रणनीतिक और व्यावसायिक महत्त्व
प्राचीन समय में महाराष्ट्र के तटीय बंदरगाहों से व्यापारिक माल घाट मार्गों से नासिक तक पहुंचाया जाता था। उस समय गोंडा घाट पर निगरानी रखने के लिए हरिहर गढ़ और भास्करगढ़ किलों का निर्माण किया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि हरिहर किला व्यापारिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण था।
किले की विशेषताएं – History of Harihar fort Maharashtra
- किले के शिखर पर एक प्राचीन शिवलिंग है, जो धार्मिक आस्था का केंद्र भी है।
- एक बड़ी प्राकृतिक गुफा भी है जिसमें कोई मूर्ति स्थापित नहीं है।
- किले से चारों दिशाओं में अद्भुत दृश्य दिखते हैं:
- उत्तर में: वाघेरा
- दक्षिण में: त्रिंगलवाड़ी, कावनाई और वैतरणा डैम
- पूर्व में: ब्रह्मगिरी, ब्रह्मा और कपड़ा पर्वत
- पश्चिम में: फनी, बसगड़ और उत्वाड़ पर्वत
जलस्रोत और जलवायु – History of Harihar fort Maharashtra
इस क्षेत्र की प्रमुख नदी वैतरणा है, लेकिन सह्याद्रियों की ढलान की वजह से वर्षा जल अधिकतर बहकर चला जाता है। जनवरी से मार्च तक इस क्षेत्र में पानी की भारी किल्लत रहती है, इसलिए ट्रैकिंग के लिए आने वाले पर्यटकों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
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ट्रैकिंग अनुभव
हरिहर किला ट्रैकिंग के लिए एक बेहतरीन डेस्टिनेशन है। रॉक क्लाइंबिंग करने वालों के लिए यह जगह एक परफेक्ट विकल्प है, क्योंकि इसके चट्टानी रास्ते न तो बहुत आसान हैं और न ही अत्यधिक कठिन। बिना किसी भारी उपकरण के आप सावधानीपूर्वक किले की चोटी तक पहुंच सकते हैं। यह रोमांच से भरपूर अनुभव होता है।