दार्जिलिंग को मिली अनोखी सौगात, भारत का पहला Frozen Zoo शुरू

📝 Last updated on: April 23, 2025 2:55 pm
Frozen Zoo

Frozen Zoo: बादलों से घिरे पूर्वी हिमालय की गोद में, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में एक अनोखा प्रयास आकार ले रहा है—जो जुरासिक पार्क जैसा दिखता तो है, लेकिन मकसद बिलकुल अलग है। यहाँ कोई डायनासोर को ज़िंदा करने की कोशिश नहीं हो रही, बल्कि यह जगह उन प्रजातियों के लिए आशा की किरण बन रही है जो विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं। लाल पांडा की मासूम आंखों और हिम तेंदुए की गरिमा के बीच विज्ञान भविष्य के लिए काम कर रहा है—अतीत को लौटाने के लिए नहीं, बल्कि आज को बचाने के लिए।

भारत का पहला ‘Frozen Zoo’: एक जैविक खजाना

दार्जिलिंग स्थित पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क अब भारत का पहला फ्रोज़न जू बन चुका है। इसे ‘जेनेटिक आर्क’ भी कहा जा रहा है, जो हिमालयी जीवों के डीएनए को -196°C तापमान पर तरल नाइट्रोजन में स्टील टैंकों के भीतर सुरक्षित रखता है। यह पहल हैदराबाद के CCMB यानी सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी के सहयोग से संभव हो पाई है। इसका मकसद एक ही है—अगर जंगलों से कोई प्रजाति खत्म भी हो जाए, तो उसके जेनेटिक ब्लूप्रिंट को सहेजकर भविष्य में उसे पुनर्जीवित किया जा सके।

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Frozen Zoo

बंगाल के मुख्य वन्यजीव वार्डन, देबल रॉय बताते हैं कि यह पहल सिर्फ जीवों को बचाने तक सीमित नहीं है। प्राकृतिक या मानवीय कारणों से मरे हुए जानवरों के टिशू भी इस लैब में सुरक्षित रखे जाते हैं। यह एक “डीएनए आर्काइव” की तरह काम करता है—एक ऐसा खजाना जो समय के साथ और भी कीमती होता जाएगा।

भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित चिड़ियाघर

2,150 मीटर की ऊँचाई पर फैला यह पार्क भारत का सबसे ऊँचा जूलॉजिकल पार्क है। 67.8 एकड़ में फैला यह स्थान लाल पांडा, हिम तेंदुए, और तिब्बती भेड़ियों के संरक्षण का प्रमुख केंद्र है। यहाँ न केवल जीवित जानवरों की देखभाल होती है, बल्कि उनके डीएनए को भी भविष्य के लिए सुरक्षित रखा जाता है—एक ऐसी दोहरी भूमिका जो पारंपरिक चिड़ियाघरों से कहीं आगे है।

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वैश्विक पहल से जुड़ता भारत

फ्रोज़न ज़ू कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक तेजी से फैलती हुई वैश्विक पहल है। दार्जिलिंग में बायो-बैंकिंग की शुरुआत जुलाई 2024 में हुई थी, जिसमें लाल पांडा, हिम तेंदुआ, गोरल और हिमालयी भालू जैसे जीवों की जेनेटिक सामग्री इकट्ठा की गई।

एक बीमा पॉलिसी… भविष्य के लिए

चिड़ियाघर के निदेशक बसवराज होलेयाची इसे “जीवों के लिए एक बीमा पॉलिसी” बताते हैं। उन्होंने बताया कि चिड़ियाघर में एक विशेष लैब बनाई गई है जहां गेमेट्स और डीएनए सैंपल्स को दो स्तरों पर संरक्षित किया जाता है—पहला, -20°C पर जेनेटिक सैंपलिंग और दूसरा, -196°C पर बायो-बैंकिंग। वैज्ञानिक इन सैंपल्स को इस तरह तैयार करते हैं कि सेल डैमेज न हो और वे सालों-साल सुरक्षित रहें।

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अंतरराष्ट्रीय पहचान

इस पहल को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है। World Association of Zoos and Aquariums (WAZA) ने दार्जिलिंग की इस लैब को अपने Red Panda Conservation प्रोजेक्ट का हिस्सा चुना है। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है—एक संकेत कि हमारी जैव विविधता को बचाने की कोशिशें अब वैश्विक स्तर पर सराही जा रही हैं।